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साक्षात्कार : श्रीमती किरण चोपड़ा

‘आओ लोगों की जान बचाएं’

हिन्दी दैनिक पंजाब केसरी की सीईओ श्रीमती किरण चोपड़ा से दधीचि देह दान समिति के उपाध्यक्ष श्री महेश पंत तथा श्री विनोद अग्रवाल ने हाल ही में विस्तृत बातचीत की। इस बेबाक बातचीत में किरण जी ने समिति के कार्यों को सराहा और बताया कि वह कैसे देह दान के लिऐ प्रेरित हुईं। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:-

प्रश्न - किरण जी, देह दान/अंग दान और नेत्र दान विषय की ओर आप कैसे आकर्षित हुईं? अपनी देह के दान की प्रेरणा आपको कब और कैसे मिली?
उत्तर - मैं बहुत सारे सामाजिक कार्य करती हूं। इनमें नेत्र दान और देह दान के बारे में भी लोगों को बताती रही हूं, प्रेरित करती रही हूं। मैं चिकित्सा-छात्र रह चुकी हूं और देह दान/अंग दान की ज़रूरत तथा महत्व को अच्छी तरह समझती हूं। लेकिन मैं तब भी और अब से कुछ समय पहले तक स्वयं ये दान करने से डरती थी। सच कहंू तो एक महिला होने के नाते मैं स्वयं को लेकर हमेशा बहुत ज़्यादा सजग रही हूं। मैं कल्पना करती थी कि मरने के बाद जब मेरी आंखें निकाल ली जाएंगी तो मेरा चेहरा कैसा लगेगा। मैं एक तरह से डरपोक थी और मेरा दिल बहुत छोटा था। मैं दूसरों से नेत्र दान और देह दान के लिए कहती थी, लेकिन जब भी अपने लिए सोचने की कोशिश की दो कदम पीछे हट गई। सोचने लगती थी नहीं.... अभी नहीं.... अभी नहीं। पच्चीस सितम्बर, 2016 को मैं एक (दधीचि देह दान समिति) के कार्यक्रम में गई। मैं वहां मुख्य अतिथि और मुख्य वक्ता थी। वहां भी मैंने यही कहा कि अपनी देह दान/अंग दान करने से मैं डरती हूं। सही मायने में मुझे डर लगता भी था। लेकिन वहां मैंने जब एक लड़की को यह बताते हुए सुना कि वह पिछले 14 साल से इसलिए जीवित है क्योंकि किसी ने, प्रत्यारोपण के लिए, अपना दिल उसे दान किया था। कार्यक्रम में एक अन्य युवती ने मरने के बाद अपना दिल दान करने का संकल्प लिया। और फिर, कुछ ऐसा वातावरण बना कि मुझे लगा, ‘‘दिस इज़ राइट टाहम। नाऊ यू शुड डू सम थिंग’’ (यही सही समय है और मुझे कुछ करना चाहिए )। उस वातावरण का गहरा असर हुआ और मेरे दिल से आवाज़ आई, ‘‘किरण, जीवित होकर लोगों के लिए इतना काम कर रही हो, मरने के बाद किसने देखा है?’’ उसी समय मेरे अंदर प्रेरणा जागी कि मुझे अपनी देह दान करनी चाहिए। इस प्रेरणा पर, अपने भाषण के ठीक 15 मिनट बाद मैंने अपनी देह को दान करने की घोषणा कर दी। मैं कोई भी काम तभी करती हूं जब उसे करने की मेरे अंदर से आवाज़ आती है।

प्रश्न - आपके इस संकल्प पर आपके बेटे की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर - वह अभी तक कायल नहीं हुआ है। लेकिन मैं उसे समझाया कि मैंने देखा है, एक आंख दान होती है तो उससे कई आंखों को रोशनी मिलती है। एक देह के दान से कई लोगों का जीवन बचता है। मैंने देखा है उन लोगों को जिन्हें किसी का कोई अंग मिला, वह जीवित हैं और अपनी लाइफ में आगे बढ़ रहे हैं।

प्रश्न - ‘‘सो यू आर ग्रेटफुल टु देम (इसलिए आप उनकी आभारी हैं)?’’
उत्तर - ‘‘यस, आई एम ग्रेटफुल टु देम (हां, मैं उनकी आभारी हूं)।’’

प्रश्न - समाज में देह दान/अंग दान और नेत्र दान की स्वीकार्यता अब भी बहुत कम हैं। आपके अनुसार ऐसा क्या किया जा सकता है और हम क्या कर सकते हैं कि बड़े पैमाने पर समाज इसे स्वीकार करे और प्रत्यारोपण तथा चिकित्सा अध्ययन के लिए अंगों व मृत देहों की कमी दूर हो सके?
उत्तर - इसके लिए समाज में जागृति और सेवा भाव का भी होना ज़रूरी है। इन दानों को लेकर हमारे समाज में कई भ्रम फैले हुए हैं। जैसे, कोई अंग देने पर अगला जन्म उसी अंग के बिना होगा। आंख नहीं होगी, दिल नहीं होगा। कई लोगों को लगता है अगर देह दान कर दी तो वह स्वर्ग जा पाएंगे या नहीं? ऐसे में लोगों को जागृत करना आवश्यक है। जैसे एक कार्यक्रम ने मेरी जैसी डरपोक के मन को बदल दिया, जो यह कभी सोच ही नहीं सकती थी कि वह देह का दान करेगी, उसी तरह आपके कार्यक्रम (बड़े पैमाने पर) लोगों को प्रेरित कर सकते हैं। ऐसे बहुत से अच्छे कार्यक्रम करने चाहिए समाज के बीच, हर युवा-बच्चे-बुज़ुर्ग को लेकर, ताकि जागृति आए। लोगों को यह भी बताना चाहिए कि चिकित्सा विद्यार्थियो के लिए मृत देह कितना मायने रखती है। उन्हें व्यावहारिक तौर पर मानव अंगों का ज्ञान होगा जो चिकित्सक बन जाने पर उनके लिए उपयोगी भी साबित होगा। आप लिख कर, बोल कर, एक्ट करकेे लोगों को समझा सकते हैं। छोटी-छोटी स्क्रिप्ट्स भी तैयार की जानी चाहिए ताकि लोगों को पता चले किसी एक के देह दान/अंग दान से कितना फायदा होगा और यह कैसे किया जा सकता है। इस संबंध में समाज में लोगों को ज्ञान नहीं है। जैसे मुझे नहीं था। लोग मुझसे पूछते थे, उन्हें देह दान/अंग दान या नेत्र दान करना है, कहां करें? उन्हें रास्ता नहीं पता होता था। मुझे भी इसका उत्तर नहीं मालूम था। मैं कह देती थी, गूगल में सर्च कर लीजिए या किसी से पूछ कर बताती हूं। पर जब आपकी समिति से जुड़ी तो लगा दान की प्रक्रिया बहुत आसान है। अब मैं पूछने वालों को बता सकती हूं कि इसके लिए (संकल्प) फाॅर्म कहां मिलेंगे और उन्हें क्या करना होगा। मुझे लगता है यह बातें आम लोगों तक नहीं पहुंचती हैं। मीडिया को भी इसमें अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। मीडिया ने ही सबसे पहले यह मुहिम छेड़ी थी कि बुज़ुर्ग समाज के लिए बेकार नहीं हैं, वह निष्क्रिय नहीं हैं, कदमों की धूल नहीं माथे की शान हैं, आओ चलें उनके साथ जिन्होंने हमें चलना सिखाया। उसी तरह जब लोगों को ज्ञान होगा कि देह दान से बहुत से लोगों का फायदा हो सकता है तो मुझे यकीन बड़ी संख्या में लोग आगे आएंगे।

प्रश्न - समाज में किसी भी विषय पर धारणा बनाने और लोगों को शिक्षित करने में मीडिया की भूमिका निश्चित तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है। पंजाब केसरी जैसा बड़ा समूह और दिल्ली व एनसीआर में कार्यरत दधीचि देह दान समिति मिल कर कैसे इस कार्य/आंदोलन को आगे बढ़ा सकते हैं?
उत्तर - देखिए, यह तो मैं समझ चुकी हूं कि इससे (देह दान/अंग दान से) बड़ा कोई दान नहीं है। अपने अनुभव से कह सकती हूं कि लोगों को प्रेरित करने के लिए (हमें) मिल कर काम करना होगा। आपको कार्यक्रम करने होंगे और हम हमेशा मीडिया पार्टनर बन कर आपकी जितनी मदद कर सकते हैं करेंगे, जितना साथ निभा सकते हैं निभाएंगे। पंजाब केसरी लिख कर, बोल कर लोगों को प्रेरित करेगा। पंजाब केसरी में आज भी इतनी शक्ति है कि वह बहुत कुछ बदल सकता है यह मैं आपसे दावे से कह सकती हूं।

प्रश्न - दधीचि देह दान समिति के लिए छोटा सा संदेश।
उत्तर - मैं यही कहूंगी कि दधीचि देह दान समिति बहुत ही अच्छा और पुण्य का काम कर रही है। इसका नाम ही ऋषि दधीचि के नाम से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने वज्र शस्त्र बनाने के लिए अपनी हड्डियां तक दान में दे दी थीं। मैं यही संदेश देना चाहूंगी कि आपकी इस मुहिम से बहुत लोगों की जान बच सकती है, बहुत लोगों को ज्ञान मिल सकता है। हमारा एक नारा होना चाहिए ‘आओ लोगों की जान बचाएं’।

प्रस्तुति - इन्दु अग्रवाल

परिचय
श्रीमती किरण चोपड़ा का समाचार पत्र बुज़ुर्गों, युवाओं, बेटियों यानी समाज के हर वर्ग से ज़मीनी स्तर पर जुड़ा हुआ है। उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश करता है और जहां लगता है सामाजिक आंदोलन चलाने की ज़रूरत है वहां किरण जी उसके साथ जुड़ जाती हैं। उन्हें लोगों की समस्याओं, उनकी वास्तविकताओं से प्रेरणा मिलती है। आप वास्तविकता के स्तर पर ही काम करती हैं।