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अध्यक्ष की कलम से
जो केवल अपने लिए रसोई पकाता है वह पाप खाता है ।।
आप शीर्षक देख कर चौंक गए होंगे। यह शीर्षक लिखने का साहस मैंने नहीं किया । यह पंक्ति श्रीमदभगवदगीता की है - ‘भुंजते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।।’ (अध्याय 3, श्लोक 13, द्वितीय पंक्ति) । भगवान ने कहा है तो मैंने भी दोहरा दिया।
इन दिनों भारत के लिए बहुत शर्मनाक खबर है। एक संस्था है इन्टरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इन्स्टिट्यूट। यह हर साल एक रिपोर्ट छापती है, जिसका नाम है वर्ल्ड हंगर इन्डेक्स। इस रिपोर्ट में विश्व के देशों को, उनके यहां भूख और कुपोषण की स्थिति के आधार पर नम्बर दिए जाते हैं। भारत का नम्बर, 118 देशों की सूची में 97 है।
इसमें उन बच्चों की संख्या गिनी जाती है जिनको या तो पूरा भोजन नहीं मिलता या फिर जैसा भोजन चाहिए वह नहीं मिलता। इसके दो परिणाम होते हैं। पहला, बहुत सारे बच्चों का वज़न, उनकी ऊंचाई और उम्र के हिसाब से बहुत कम रह जाता है। तकनीकी भाषा में इन्हें वेस्टेड (Wested) कहते हैं। दूसरा, बहुत सारे बच्चों की ऊंचाई, उनकी आयु के हिसाब से बहुत कम रह जाती है। तकनीकी भाषा में इन्हें स्टन्टेड (Stunted) कहते हैं। चैंकाने वाली बात है कि भारत में पैदा होने वाले 100 में से 39 बच्चे वेस्टेड या स्टन्टेड होते हैं। दुर्भाग्यशाली बच्चे जन्म से मिली इस कमी को अपने जीवन काल में कभी पूरा नहीं कर पाते। वह एक अधूरे इंसान के रूप में नाटे, शरीर और बुद्धि से कमज़ोर जीवन बिताने के लिए मजबूर होते हैं।
यह चुनौती केवल सरकार के लिए नहीं है। यह चुनौती हर उस व्यक्ति के लिए है जिसके पास भरपेट खाना खाने के लिए पैसा है। यह हर उस परिवार के लिए यक्ष प्रश्न है जिसके पास के साधन केवल उसके अपने लिए इस्तेमाल होते हैं।
पुराने समय में भारत आने वाले चीन के यात्रियों ने अपने यात्रा विवरण में लिखा था कि भारत के लोग पानी मांगने पर दूध या शर्बत पिलाते हैं। यहां का गृहस्वामी भोजन करने से पहले अपने घर के दरवाज़े पर आकर आवाज़ लगाता है कि ‘जहां तक मेरी आवाज़ जा रही है वहां तक किसी ने भोजन न किया हो तो मेरे घर आकर भोजन कर ले’। अपना जन्मदिन और बाकी त्योहार अन्नदान करके मनाते हैं। घर की पहली रोटी गाय के लिए बनाते हैं। चिड़िया को मक्का-बाजरा, गिलहरी को मूंगफली, चींटी को आटा और सांप को दूध पिलाते हैं।
हमारी संवेदनाओं को अब क्या हो गया है? हर शहर और गांव में, हर मोहल्ले में हमारे आस-पास फैले हुए भूख और कुपोषण हमें द्रवित क्यों नहीं करते? विश्वनाथ के देश में 39 प्रतिशत बच्चे अनाथों की तरह क्यों हैं?
वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में विदर्भ के राजा श्वेत की कथा का प्रसंग आता है। राजा श्वेत ने जीवन में बहुत से पुण्य कार्य किए थे। मरने के बाद वह स्वर्ग में गए। उनको वहां खाना नहीं मिल रहा था। महर्षि अगस्त्य ने देखा कि वह स्वर्ग से विमान से नीचे पृथ्वी पर आए और एक झील में तैरती हुई मृत मानवदेह का मांस खा लिया। महर्षि ने उनसे पूछा, ‘यह क्यों किया?’ राजा ने बताया कि उन्होंने बहुत पुण्य किए थे, बहुत दान किए थे, पर भोजन का दान कभी नहीं किया था। जिसने अन्न दान नहीं किया उसको स्वर्ग में भी भोजन नहीं मिलता। इस कारण वह नित्य ही अपनी मृत देह का मांस खाने के लिए विवश थे। बहुत बाद में उनकी उस श्राप से मुक्ति हुई।
दधीचि देह दान समिति के हम सभी लोग स्वस्थ, सबल भारत के लिए काम करते हैं। हमारे द्वारा दान की गई आंखों की संख्या 470 हो गई है। मैं आज की अपील अन्तर्दृष्टि को जगाने के लिए कर रहा हूं। करुणा को जगाने के लिए कर रहा हूं। हम सब अपनी कमाई का कुछ भाग अन्न दान के लिए समर्पित करें। समाज के सामूहिक बल, इच्छाशक्ति और संकल्प के साथ भूख और कुपोषण को दूर करें।
भगवान करे वह दिन शीघ्र आए जब एक भी बच्चा भूखा न सोए। कुपोषित न हो। हर बच्चा स्वस्थ हो, सबल हो। सुशिक्षित हो। और, तब हम कहेंगे कि सर्वे भवन्तु सुखिनः को प्राप्त कर लिया है।
आलोक कुमार