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अध्यक्ष की कलम से
मेडिकल कॉलेज में सम्मानित होती मृत देह
मुझसे एक प्रश्न बार बार पूछा जाता है कि मेडिकल कॉलेज में दान की गयी देह का क्या होता है। उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाता है। उसका सम्मान होता है कि नही।
मैं एक बार मोहन फाउंडेशन के सेमिनार में गया था। एक प्रमुख डॉक्टर वहां बोले थे। उन्होंने मेरी तरफ देख कर नाम लेकर कहा कि आलोक जी, अगर आप एक बार जाकर देख लें कि मेडिकल कॉलेज में दान की गई देह कैसे रखी जाती हैं, उसके साथ कैसा व्यवहार होता है, तो आप देहदान का विचार त्याग देंगे।
उनके भाषण के बीच में मैं खड़ा हुआ और मैंने कहा था कि मैं गया हूँ, मैंने देखा है और यह देखने के बाद मैंने दान करने का निर्णय लिया है।
उस समय मेरे दिमाग में, 1974 में अमृतसर मेडिकल कॉलेज के एनाटोमी विभाग संग्रहालय का वह पहला एक्ज़िबिट घूम गया था, जिसमे एक नरकंकाल रखा था। उसके नीचे लिखा था कि यह इसी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष का है। उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले वसीयत की थी कि उनके जाने के बाद उनका शरीर उनके कॉलेज में बच्चो की पढाई के लिए दान कर दिया जाए।
दधीचि देह दान समिति का एक प्रतिनिधिमंडल 14 दिसंबर 2015 को आर्मी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली में गया था। वहां के डीन मेजर जनरल नरेश चंद अरोड़ा (सेवानिवृत) और एनाटोमी विभाग के अध्यक्ष कर्नल बी. के. मिश्रा हमको अपनी एनाटोमी प्रयोगशाला में ले गए।
इस कॉलेज को हमने अब तक 27 देह(कैडेवर) दान की है। हमने देखा कि प्रयोगशाला की सामने की दीवार पर ही तीन ऑनर बोर्ड्स लगे है। इनमे प्रत्येक देह दाता का नाम, दान देने की तारीख और उनके निवास के मोहल्ले का नाम लिखा है। हम थोड़ी देर वहां काम कर रहे विद्यार्थियों के साथ बैठे। विद्यार्थियों ने हमें बताया कि सेशन की शुरुआत में सब विद्यार्थियों को हॉनर बोर्ड्स के सामने बुलाया गया। उन्हें बतया गया कि इस प्रयोगशाला में जो देह हैं वो उन लोगो के परिवारों ने दान की है जिनके नाम ऑनर बोर्ड्स पर लिखे है। दिल्ली के वरिष्ठ और प्रतिष्ठित व्यक्ति अपने जीवन काल में संकल्प करते है कि उनके मृत्यु के बाद उनकी देह को एनाटोमी लैब में दान कर दिया जाये। विद्यार्थियों ने बताया की हॉनर बोर्ड्स के सामने उन्होंने उन दान दाताओं के प्रति श्रद्धा व्यक्त की और उन्हें प्रणाम किया।
मैंने विद्यार्थियों से कहा कि इन दान दाताओं में ऐसे लोग भी है जिनको उनके जीवन काल में उनके कामों के कारण बड़ी सफलता और यश प्राप्त हुआ था। मैने देखा कि बहुत सारे विद्यार्थी आचार्य गिरिराज किशोर के नाम से परिचित थे जिनकी देह भी वहां दान हुई है।
मुझे विद्यार्थियों ने बताया कि प्रतिदिन शाम को वह लैब छोड़ने से पहले उस देह को चादर से ठीक से ढकते है जिसपर उन्होंने काम किया है और अगले दिन उस देह को प्रणाम करने के बाद ही उस देह पर काम करने के लिए उसकी चादर हटाते है।
मैंने विद्यार्थियों से पूछा कि वह इस बारे में और क्या करना चाहेंगे। थोड़ा विचार करने के बाद उन्होंने कहा कि आगे से प्रत्येक दान दाता के परिवार को सारे बैच के द्वारा हस्ताक्षर करके धन्यवाद पत्र भेजा जायेगा और दो विद्यार्थी दान दाता की शांति सभा में भी भाग लेंगे।
मुझे संतोष हुआ। मुझे स्मरण आया की जिस समय संसद में ट्रांसप्लांटेशन ऑफ़ ह्यूमन ओर्गन्स एक्ट पर, इस एक्ट में संशोधनों पर चर्चा हो रही थी, तो राजस्थान के एक मेडिकल कॉलेज की एक घटना का अख़बारों में बहुत जिक्र आया था, जिसमे दान किये गए शरीर को चूहे कुतर कर खा गए थे।
मेरा मन इससे बहुत व्यथित हुआ था।
आर्मी मेडिकल कॉलेज ने उस व्यथा को शांत कर दिया। मुझे संतोष है कि दिल्ली के मेडिकल कॉलेज में दान की गयी देह के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार होता है और विद्यार्थी इस दान के प्रति यथोचित श्रद्धा रखते है।
आलोक कुमार
organ & tissue...
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