
श्री श्री रवि शंकर

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अध्यक्षीय
आदरणीय बन्धु-भगिनी
8,शुक्लपक्ष, भाद्रपद (2 सितम्बर) को दधीचि जयन्ती है। मानव कल्याण और शुभ-संस्कृति की रक्षा के लिए दधीचि ने इन्द्र को अपनी अस्थियंा दान की थी। दधीचि की यह परम्परा अभी भी चल रही है। जागरूक मनुष्य अपने जीवन काल मे अपना रक्त, प्लेटलैट्स, स्टेम सैल्स, किडनी व लिवर आदि एवं मृत्यु के बाद अपनी आंखे, हड्डियां व अन्य अंग दान देकर, नीरोगी, स्वस्थ एवं सबल भारत के निर्माण में सहभागी हो रहे हैं। अैन सी आर दिल्ली में ही हजारों लोगों ने मृत्यु के बाद अपनी पूरी देह मैडिकल कालेज के विद्यार्थियांे की शिक्षा व अनुसन्धान के लिए दान करने का संकल्प किया है। इसमेें से 91 संकल्पित लोगों की देह, मृत्यु के बाद मैडीकल कालेजों को श्रद्वापूर्वक दी जा चुकी है।
समिति अब तक 349 लोगो की आखें दान भी करवा चुकी है। इस वर्ष अंगदान दिवस, 6 अगस्त 2014 को स्टैम सैल दान का संकल्प करवाने का महा अभियान हमने शुरू किया है। पहले चरण में दिल्ली व राष्टृृीय राजधानी क्षेत्र को, हमारा स्वप्न है कि नीरोगी व स्वस्थ बनाएॅगे। हमारा संकल्प है कि इस स्वप्न को साकार करने का पुरूषार्थ प्रकट करेंगे। देह-अंग दान की चेतना समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक ले जाएंगे। इस मे रूकावट बनने वाले अंधविश्वासों को दूर करेंगे । इस दान के लिए समाज में स्वीकृति व श्रद्धा पैदा करेंगे ।
इस यज्ञ में, अपने स्वयं की देह को अर्पण करना होता हैं। हम अपने अंगो को कहीं प्रत्यारोपित होने से - मृत्यु के बाद जीते है, और मन से विदेह हो जाते है। निर्मित इस शरीर को, मृत्यु के बाद अपने समाज को विनम्रतापूर्वक अर्पित कर क,े दान दाता निश्चय ही मोक्ष का अधिकारी होता है। वह आवागमन से मुक्त हो जाता है। यही धर्म है। यही परम पुरूषार्थ है। यही अंतिम- सोलहवें संस्कार की सार्थकता है।
दधीचि जयन्ती 2014 की पूर्व सन्ध्या पर समिति अपने ई-जर्नल का पहला अंक प्रसारित कर रही है। हमें आनन्द है कि यह श्री नितिन गडकरी के हाथों से हो रहा है, जो अन्त्योदय केवल विचारांे में ही नही अपितु आचरण व कार्यों में भी जीते हंै।
हम प्रयत्न करंेगे कि हर दो मास में प्रकाशित होने वाला यह इ जर्नल अपनी सामग्री व कलेवर में इस क्षेत्र मे रूचि रखने वाले सब लोगों के लिए उपयोगी हो और उनको वाणी भी दे सके।
आइये हम सब मानवता के लिए इस पुण्य कार्य मे भरपूर सहयोग दें।
आलोक कुमार
अध्यक्ष