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अध्यक्ष की कलम से
दधीचि भारतीय परम्परा के प्रथम देहदानी है। देवासुर संग्राम में वज्र बनाने के लिए देवताओं को ऋषि दधीचि की हड्डियों की आवश्यकता थी। देवराज इन्द्र दधीचि से उनकी हड्डियां मांगने उनके आश्रम पहुंचे। इन्द्र का निवेदन दधीचि को अभिभूत कर गया - (अहो, यह हड्डिया भी काम की हो गई)। दधीचि ने आसन लगाया। प्राणों को ललाट में केंद्रित किया। प्राण अनन्त में विलीन हो गए। हड्डियों का वज्र बना देवों को असुर संस्कृति से युद्ध में विजय मिली। देहदान की इसी परम्परा का आधुनिक संस्कार है दधीचि देहदान समिति।
देश में पिछले 26 सालों से अंगदान के क्षेत्र में कार्यरत दधीचि देहदान समिति इस पहल का अर्थ लोगों को अंगदान के महत्व के प्रति जागरूक कराना है। भारत जैसे देश में धार्मिक और पुरानी मान्यताओं व आस्थाओं के कारण ज्यादातार लोग अंगदान करना पंसद नहीं करते। इससे न सिर्फ वो अंगदान की संभावना को कम करते हैं, बल्कि कई ऐसे लोगों के जीवन की संभावना को भी कम कर देते है, जो अंगदान पर निर्भर हैं। देश में दान में दिए गए अंगों की आवश्यकता है और ऐसे में ये पहल बहुत की महत्वपूर्ण कदम है। भारत में तकरीबन प्रतिवर्ष दो लाख लोगों के अंगों में विफलता हो रही है और उन्हें जिन्दगी बचाने के लिए अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है। इनमें से ज्यादातर लोग युवा हैं और उनके लिए अंग प्रत्यारोपण ही एकमात्र ऐसा उपाय है, जिससे वे फिर से स्वस्थ जीवन जी सकते हैं, लेकिन पुरानी मान्यताओं के कारण लोग अंगदान करने से हिचकते है।
वर्ष 1974 में अमृतसर मेडिकल काॅलेज के एनाॅटमी विभाग के संग्रहलाय में घूमने गया। वहां प्रवेश करते ही देखा कि एक अस्थि-कंकाल रखा हुआ है। उन्हें उत्सुकता वश पूछने पर पता चला कि यह कंकाल उसी काॅलेज में पढ़ाने वाले एनाॅटमी विभाग के एक पूर्व विभागाध्यक्ष का है। उन्होने वसीयत की थी, कि (सारी जिंदगी मैं दूसरों के शवों पर विद्यार्थियों को पढ़ाता रहा-मेरे मरणोपरांत मेरा शव भी इसी मेडिकल काॅलेज के विद्यार्थियों के शिक्षा के लिए रखा जाए। विभागाध्यक्षा के समर्पण ने मुझे तब भी अभिभुत किया था और आज भी मैं उसी क्षण को अपने लिए प्रेरक प्रसंग के रूप में देखता हूं।
1998 से देहदान पंजीकरण के लिए काम कर रही दधीचि देहदान समिति के ने 14 साल में अब तक 100 लोगों की देह को दान किया जा चुका है। अब तक दधीचि देहदान समिति में 4000 लोगों ने देहदान करने का संकल्प लिया है। उन्होंने कहा कि नानाजी देशमुख इस समिति के प्रथम देहदानी है। उनका देहांत मध्य प्रदेश के चित्रकुट जिले में हुआ था। तब वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने देशमुख के शरीर को प्लेन से दिल्ली एम्स में लाया और उनका अंगदान करवाया था। 370 लोगों का नेत्रदान व 2 लोगों का अंगदान हो चुका है। अब लगता है कि हमारे परिश्रम का फल मिलने लगा है।
आलोक कुमार
Welfare Minister...
Transplant Co-ordinator’ Training Programme ..
First Head Transplant...
gives hope to poor
Organ Donation in Alwar