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अध्यक्ष की कलम से
इस साल के पहले तीन महीने यानि जनवरी, फरवरी और मार्च विशिष्टताओं से भरे रहे। जैसे ‘दधीचि देह-दान समिति’ ने कुल देह-दानों का आंकड़ा सौ से उपर पार कर लिया। यह आंकड़ा 101 तक पहुंच गया। इसमें, इसी तिमाही में हुए 8 देह-दान भी शामिल हैं।
दिल्ली के अशोक विहार की 67 साल की श्रीमती दर्शना की उस समय घर में मृत्यु हो गई जब उनका बेटा और बहू कन्वोकेशन के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ गए हुए थे। सुबह दरवाज़ा न खोले जाने पर कामवाली ने पड़ोसियों को सूचित किया। बाद में पुलिस ने ताला तोड़ा और उनके देहांत की हकीकत सामने आई। चंडीगढ़ में बेटे को बताया गया तो उसने कहा कि वसीयत के मुताबिक उनका देह-दान होना है और इससे पहले उनकी आंखें दान होंगी। कुछ समय पहले ही हुई उसके पिता की मृत्यु के बाद उनकी भी आंखें दान की जा चुकी थीं। चंडीगढ़ से किए गए इस अनुरोध के बाद एसीपी ने कार्रवाई पूरी करके पोस्ट-माॅर्टम की प्रक्रिया रुकवा दी। दर्शनाजी की मृत देह एम्स को सौंप दी। समिति के सहयोग से यह सौंवां देह-दान था।
छब्बीस वर्षीय एक महिला। पति मज़दूर था और उनके 11 महीने की एक बेटी थी। उनके जर्जर मकान की छत गिर गई। बच्ची की मलबे में दब कर मृत्यु हो गई। पति के पैर टूट गए। घायल पत्नी को बालाजी अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे मस्तिष्क-मृत घोषित किया गया। साथ ही अंग-दान का सुझाव दिया गया। एम्बुलेंस बुलाई गई। मृत देह को एम्स ले जाया गया, जहां उसके दोनों गुर्दे, लीवर, आंखे और दिल के कपाट यानी वाॅल्व्स दान किए गए। मस्तिष्क-मृत्यु के बाद किए अंग-दान का यह पहला मामला था। इस मामले की महत्वपूर्ण बात यह रही कि एम्स ले जाई गई मृत-देह के अंग-दान के महत्व को समझते हुए और परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए बालाजी अस्पताल ने उसके पूरे दो लाख रुपए के बिल को भी माफ कर दिया।
इसके शीघ्र बाद 77 साल के श्री वीरभान चैधरी की मस्तिष्क-मृत्यु हुई। वह राष्ट््रीय स्वयंसेवक संघ और आर्य समाज के सक्रिय कार्यकर्ता थे। उनकी पत्नी और एक बेटी ब्रह्मकुमारी आंदोलन में सक्रिय हैं। श्री वीरभान की मृत्यु के बाद उन दोनों ने उनके अंग-दान का मन बनाया। अपनी मनःस्थिति को अपने आराध्य शिव बाबा की पे्ररणा मान कर इसकी व्यवस्था कराई। पुलिस ने जनकपुरी के आर्चिड अस्पताल से एम्स तक विशेष काॅरिडोर बना कर 20 मिनट में 20 किलोमीटर की दूरी तय कर मृत शरीर को एम्स पहुंचाया, जहां उनके दोनों गुर्दे, दोनों लीवर और दोनों आंखें दान की गईं। इतनी बड़ी उम्र में हुए यह एम्स के पहले अंग-दान थे।
उत्साहवर्धक बात यह है कि दान में मिले उक्त चारों गुर्दे जिन ज़रूरतमंदों के रोपित किए गए, उनके शरीर में वो अनुकूल ढंग से कार्य कर रहे हैं। ईश्वर, समिति के कार्य को गति दे रहा है और देह-दान, नेत्र-दान तथा मस्तिष्क मृत्यु के बाद होने वाले अंग-दान की उपलब्धता बढ़ती जा रही है।
ई-जरनल का चैथा अंक प्रस्तुत है। इसमें दीदी-मां ऋतम्भरा का एक लम्बा साक्षात्कार दर्शकों के सामने है। साक्षात्कार में दीदी-मां ने बताया कि उनके गुरु युगपुरुष स्वामी परमानंदजी के अमृत महोत्सव के दौरान सवा सौ लोगों ने देह-दान का संकल्प लिया था, जिनमें से अब तक तीन देह-दान हो चुके हैं। इन तीनों मामलों में दीदी-मां ने स्वयं फोन करके समिति को सूचना दी और वात्सल्य ग्राम के वाहन द्वारा देहों को दान के लिए दिल्ली भेजा। वात्सल्य मूर्ति हैं दीदी-मां। जो कहती हैं वही उनका आचरण भी है। उनका साक्षात्कार निःसंदेह समिति के आंदोलन को आगे बढ़ाएगा।
विश्वास है कि ईश्वर हमें निमित्त बना कर समाजोपयोगी यह काम करवा रहा है। प्रत्येक दान और दान का प्रत्येक संकल्प हमें ’स्वस्थ सबल भारत’ की ओर अग्रसर करता है। साथ ही दान और दान का संकल्प, मानव मात्र की आध्यात्मिक एकता - गीता के शब्दों में ‘आत्मौपम्य भाव’ - को मज़बूत करते हैं। ‘दधीचि देह-दान समिति’ का काम निरामय भारत के लिए है और विश्व के समस्त मानवों में बंधुत्व एवं एकत्व निर्माण करने का भी है।
आप सबके आशीर्वाद हमारे इस काम के साथ सदैव बने रहेंगे यह विश्वास है।
आलोक कुमार