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Vol. 20
अध्यक्ष की कलम से
’’देह-अंग दान की पर्याय बन चुकी है दधीचि देह दान समिति’’

आज से लगभग 20 वर्ष पूर्व हमारी समिति का कार्य प्रारम्भ हुआ। नाना जी देशमुख ने देह दान का संकल्प लिया और उनकी उपस्थिति में दीनदयाल शोध संस्थान में ही हमारा पहला उत्सव हुआ। उसी समय मुझे देह दान विषय की जानकारी मिली। आलोक जी से चर्चा हुई और उन्हीं से प्रेरित होकर मैं समिति का कार्यकर्ता बना। ऐसा लगता ही नहीं है कि इस कार्य को करते हुए दो दशक बीत गए। दधीचि देह दान समिति आज देह दान व अंग दान का पर्यायवाची बन गई है।

लगभग दस हज़ार महानुभावों ने समिति के माध्यम से देह-अंग दान का संकल्प लिया है। दो सौ महान आत्माओं का देह दान हो चुका है। लगभग 600 से अधिक महानुभावों की आंखें दान की जा चुकी हैं। वैसे तो यह बड़ा आंकड़ा है। केवल एक अंग दान भी बहुत बड़ी बात है। हम केवल दिल्ली एवं दिल्ली के आस-पास कार्य करते हैं। अगर दिल्ली की जनसंख्या देखें, जो एक करोड़ पच्चीस लाख के लगभग है, तो संकल्पकर्ताओं का आंकड़ा बहुत छोटा लगता है। अभी बहुत बड़ा काम बाकी है। इस काम को पूरा करना है। हमने सोचा है, 2019 तक दिल्ली को काॅर्नियल अन्धता से मुक्त करना है। नेत्र दान के लिए हमें श्रीलंका से प्रेरणा मिलती है, जहां एक भी व्यक्ति काॅर्निया की कमी के कारण दृष्टि बाधित नहीं है। बल्कि श्रीलंका तो काॅर्निया का निर्यात भी करता है।

विगत वर्षों में कार्य करते-करते जिस भी व्यक्ति से इस विषय में बात हुई, प्रत्येक ने इस विषय को मानवता के हित में बताया, पर बहुत कम लोग संकल्प लेने के लिए आगे आए। हमारी धार्मिक मान्यताएं कहीं न कहीं हमें इस पुनीत कार्य को करने से जबरन रोकती हुई बाधा बन कर खड़ी हो जाती हैं। अंग दान, देह दान विषय को इन धार्मिक मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में समझने एवं इस पर चर्चा करने की अति आवश्यकता है।

धर्मानुसार समझने के लिए समिति ने समय-समय पर विभिन्न धर्मगुरुओं से इस विषय हुई चर्चा को, समाज के सम्मुख अपनी ई-जर्नल के माध्यम से भी रखा है। अंग-देह दान संबंधित अन्य जानकारियों को भी हम अपने पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं, जिससे वह इस दान के संकल्प के लिए आगे आएं।

रामचरित मानस में संत तुलसीदास ने परहित को सबसे बड़ा धर्म कहा है:-
‘‘पर हित सरिस धरम नहीं भाई’’
समिति इस विषय के क्रियान्वयन एवं इस विषय को लेकर मानव चेतना को जगाने हेतु प्रयासरत है। देह दान व अंग दान विषय को समाज के विभिन्न क्षेत्रों तक लेकर जाना, चर्चा करना - इससे ही इसकी स्वीकार्यता और बढ़ेगी, जिसकी अभी बहुत आवश्यकता है।

दो दिसम्बर, 2017 को समिति के अध्यक्ष के नाते ज़िम्मेदारी ग्रहण करते हुए लगा कि यह बहुत बड़ा काम मैंने स्वीकार कर लिया है। उसी क्षण आदरणीय आलोक जी ने अभिभावक के तौर पर मेरे कंधे पर हाथ रख कर मेरे मनोबल को दृढ़ कर दिया।

मेरे साथी, जो दिन-रात इस कार्य को अनवरत करते हैं, रात को 2 बजे फोन आने पर भी देह दान, अंग दान की व्यवस्था निश्चित हो जाती है - ऐसे साथियों की टोली को भी अपने सम्मुख देख कर मैं आश्वस्त हुआ कि हम सब मिल कर इस कार्य को अच्छे ढंग से कर पाएंगे।

देश भर के विभिन्न राज्यों में भी कुछ संस्थाएं इस कार्य में लगी हैं। उन सभी संस्थाओं का आपस में समन्वय, हमारे इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अति महत्वपूर्ण है। किसी भी ऐसी संस्था की जानकारी फोन नम्बर सहित हमारी ई-मेल पर दी सकती है।

हमारे लिए बहुत हर्ष विषय है कि आलोक जी ने समिति का संरक्षक होना स्वीकार किया है। इसके लिए मैं उनका बहुत आभारी हूं, क्योंकि उनके मार्गदर्शन के बिना देह दान, अंग दान आंदोलन की दिशा क्या होगी हम सोच भी नहीं सकते। भारतीय नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनाओं सहित।

हर्ष मल्होत्रा

We invite you to join in this Noble Mission.
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दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, गाजियाबाद की गतिविधियाँ...
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दधीचि देह दान समिति के दधीचियों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि...