पिछले कुछ वर्षों में, अपने देश में देहदान के प्रति लोगों की जागरूकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। पहले यह प्रथा केवल कुछ खास समुदायों या व्यक्तियों तक सीमित थी, लेकिन अब यह समाज के विभिन्न वर्गों में लोकप्रिय हो रही है। उदाहरण के लिए, लखनऊ चिकित्सा विश्वविद्यालय में 500 से अधिक लोगों ने देहदान के लिए पंजीकरण कराया है, जो इस नेक कार्य के प्रति बढ़ते विश्वास को दर्शाता है। इसके अलावा, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने भी इस जागरूकता को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दधीचि देह दान समिति सहित कई और संगठन और प्रभावशाली हस्तियां, देहदान को प्रोत्साहित करने के लिए अभियान चला रहे हैं।
उदाहरण के लिए, 12 फरवरी 2025 को अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच तीसरे एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच के दौरान एक अनूठी और प्रेरणादायक पहल ने लाखों लोगों का ध्यान आकर्षित किया। भारतीय टीम के प्रमुख खिलाड़ियों विराट कोहली, रोहित शर्मा, शुभमन गिल, केएल राहुल, श्रेयस अय्यर, हार्दिक पांड्या, रवींद्र जडेजा, अक्षर पटेल, अर्शदीप सिंह, रिषभ पंत, वाशिंगटन सुंदर, और वरुण चक्रवर्ती—ने एक वीडियो संदेश के माध्यम से प्रशंसकों से अंगदान का संकल्प लेने की अपील की। अभिनेता आदित्य पंचोली ने पिछले साल घोषणा की कि वह मृत्यु के बाद अपने शरीर को चिकित्सा विज्ञान के लिए दान करेंगे। इसी तरह, कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी, बुद्धदेव भट्टाचार्य, ज्योति बसु और सोमनाथ चटर्जी ने भी अपने शरीर दान किए। इन हस्तियों के कदमों ने न केवल आम लोगों को प्रेरित किया, बल्कि देहदान को एक सम्मानजनक और गौरवपूर्ण कार्य के रूप में स्थापित करने में मदद की।26 जनवरी 2025 को, भारत के 76 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर, मध्य प्रदेश के सतना जिले के एक परिवार के 11 सदस्यों ने अंगदान का संकल्प लेकर एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया।
देहदान का सबसे बड़ा सकारात्मक प्रभाव चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में देखा जा सकता है। मेडिकल छात्रों को मानव शरीर की संरचना को समझने और सर्जरी का अभ्यास करने के लिए मृत शरीर (कैडेवर) की आवश्यकता होती है। देहदान के माध्यम से उपलब्ध होने वाले शव मेडिकल छात्रों को बेहतर प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, जिससे वे कुशल चिकित्सक बन सकते हैं। इसके अलावा, देहदान नए चिकित्सा उपकरणों के विकास और बीमारियों के प्रभावों के अध्ययन में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। बिलासपुर के सिम्स में देहदान की संख्या में वृद्धि ने मेडिकल छात्रों के प्रैक्टिकल प्रशिक्षण को बेहतर बनाया है।
भारत में देहदान को पहले कुछ सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के कारण संशय के साथ देखा जाता था। हालांकि, अब लोग इसे एक परोपकार के कार्य के रूप में स्वीकार करने लगे हैं। उदयपुर में बनाया गया देश का पहला देहदान स्मृति स्मारक इसका एक शानदार उदाहरण है। इस स्मारक में देहदान करने वाले 125 लोगों के नाम अंकित किए गए हैं, और यह लोगों को इस नेक कार्य के लिए प्रेरित करता है।
हमारी समिति और इससे जुड़े साथी लोगों को देहदान के महत्व के बारे में शिक्षित करने और पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए अभियान चला रहे हैं। इसके अलावा, मेडिकल कॉलेज और विश्वविद्यालय, जैसे कि कोटा मेडिकल कॉलेज, देहदान की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कदम उठा रहे हैं। फिर भी कुछ चुनौतियां बनी हुई हैं। कई बार परिवार के सदस्यों की आपत्ति के कारण देहदान की प्रक्रिया रुक जाती है। इसके अलावा, कुछ लोग अभी भी इस प्रक्रिया से संबंधित नियमों और औपचारिकताओं के बारे में अनजान हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए सरकार और संगठनों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। यदि इस दिशा में और अधिक जागरूकता और समर्थन प्रदान किया जाए, तो देहदान भारत में एक सामान्य और सम्मानित परंपरा बन सकती है, जो लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान देगा।
शुभाकांक्षी
मंजु प्रभा
दिल्ली-एनसीआर
जनवरी - फरवरी, 2025