संपादक की कलम से
शैक्षणिक पाठ्यक्रम में अंगदान को शामिल करने की आवश्यकता

भारत में मृतक अंग दान यानी डिसीस्ड ऑर्गन डोनेशन (डीओडी) की दरें दुनिया भर में सबसे कम हैं। किडनी इंटरनेशनल रिपोर्ट के एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट कहती है कि भारतीय परिवेश में डीओडी को लेकर समुचित ज्ञान का अभाव, लोगों का दृष्टिकोण और सामाजिक प्रथाएं सबसे बड़ी बाधा है।

यह एक क्रॉस सेक्शनल राष्ट्रीय सर्वेक्षण था, जिसे व्हाट्सएप द्वारा भारत भर में स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ सामान्य लोगों के बीच भेजा गया था। डेटा संग्रह का समय 4 फरवरी 2024 से 4 अगस्त 2024 तक 6 महीने की अवधि में फैला था। कुल मिलाकर, 1228 प्रतिक्रिया दर्ज की गई, जिनमें से अधिकांश स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों से 57.8 प्रतिशत थीं। 30 से 40 आयु वर्ग के व्यक्तियों में 42.9 प्रतिशत लोग शामिल थे। गैर-स्वास्थ्य सेवा समूह में आश्चर्यजनक रूप से 26.9 प्रतिशत लोग किसी तरह के निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थे, जबकि 10.6 प्रतिशत लोगों का मृतक के अंग को स्वीकार करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, भले ही उनका अंग भविष्य में काम करना बंद कर दे। हालांकि इस सर्वेक्षण में 79.9प्रतिशत लोगों ने अंग दान करने की इच्छा दिखाई।

अगर भौगोलिक रूप से देखा जाए तो इस सर्वेक्षण में महाराष्ट्र से 88.4 प्रतिशत और तेलंगाना से 76.66 प्रतिशत लोगों ने अंगदान की इच्छा व्यक्त की। गुजरात से 29.3 प्रतिशत लोगों ने अंगदान को लेकर अनिच्छा जताई। दिल्ली के 28.3 प्रतिशत लोगों में अंगदान को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखी। हालांकि मृतक अंग स्वीकार करने में या अंगदान करने के मामले में पुरुष और महिला के बीच कोई अंतर नहीं दिखा। इस अध्ययन का एक दिलचस्प अवलोकन यह था कि गुजरात के लोगों में दान करने की अनिच्छा होने के बावजूद, शव अंग प्रत्यारोपण की दर अधिक है। इस सर्वेक्षण में पाया गया कि चिकित्सा से जुड़े और सामान्य लोगों, दोनों में अंग दान प्रक्रिया के बारे में कम जानकारी है।

ऐसे में लगता है कि स्वास्थ्य सेवा शिक्षा में बदलाव की जरूरत है। स्कूल और स्नातक स्तर पर शैक्षणिक पाठ्यक्रम में अंगदान को शामिल करना चाहिए और बच्चों को इस नेक काम के लिए संवेदनशील बनाना चाहिए। दुनिया के अन्य देशों के प्रत्यारोपण प्राप्तकर्ताओं के किस्से और सफलता की कहानियां अपने देश में अंग दान को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं। हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि हर क्षेत्र में प्रगति के बावजूद,अपने देश में कई लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

शुभाकांक्षी
मंजु प्रभा

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