संपादक की कलम से
देह और अंगदान में स्वास्थ्य कर्मियों की सकारात्मक भूमिका

जीवन एक सतत यात्रा है। यह जन्म से शुरू होती है और मृत्यु पर समाप्त होती है। इस यात्रा में कई पड़ाव भी आते हैं। कई बार खुशी के तो कई बार तकलीफों के। अक्सर बीमारियां हमें तकलीफ की ओर लेकर जाती हैं। जिंदगी का यह एक सहज चरण होता है। उचित समय पर चिकित्सा की सुविधा मिल जाने पर हम सब इससे उबर जाते हैं। जिंदगी की यात्रा फिर सहज ढंग से शुरु हो जाती है। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि हमारे अंग इतने बीमार हो जाते हैं कि वे ठीक नहीं हो पाते। उनकी कोशिकाओं का त्रुटि निवारण नहीं हो पाता। ऐसे हालात में बीमारी बढ़ती जाती है और फिर एक ऐसा समय भी आता है कि अंग बदलने की जरूरत महसूस होने लगती है। चिकित्सा की भाषा में इसे अंग प्रत्यारोपण कहते हैं।

अंगदान आज समाज की सबसे बड़ी जरूरत है। इसलिए अंगदान और देहदान को लेकर अभी भी जागरूकता की जरूरत है। मनुष्य के शरीर में हृदय, यकृत, गुर्दे और फेफड़े उन अंगों में से हैं , जिन्हें दान किया जा सकता है। मेडिकल छात्रों की पढ़ाई के लिए पूरी देह दान की जा सकती है।

अन्य देशों की तुलना में भारतीयों में मोटापा और मधुमेह अधिक आम हैं। मधुमेह के कारण किडनी के खराब हो जाने का संकट यहां बहुत बड़ा है। ऐसी हालत में किडनी के प्रत्यारोपण की आवश्यकता महसूस होती है। मोटापा, किसी व्यक्ति के जीवन पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं। फैटी लीवर के कारण कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। और यदि अनुपचारित छोड़ दिया जाता है, तो मृत्यु हो जाती है। ऐसे समय में यकृत प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है ।

लेकिन अंग प्रत्यारोपण के मामले में दूसरे देशों की तुलना में हम पीछे हैं। कोई भी व्यक्ति जो प्राकृतिक या आकस्मिक मृत्यु को प्राप्त करता है, एक संभावित दाता हो सकता है। लेकिन अक्सर सामाजिक परिस्थिति और हमारी मानसिकता हमें अंग या देहदान करने से रोकता है। यह हम सबके लिए एक सामाजिक लड़ाई की तरह है। इस लड़ाई में हमारी मदद कर सकते हैं, समाजिक कार्यकर्ता, स्कूल के शिक्षक और फिर स्वास्थ्यकर्मी। उदाहरण के रूप में देखें तो अस्पताल में प्रत्येक रोगी डॉक्टर, नर्स और अन्य सहायकों का साथ रहता है। वे मरीजों को या उनके रिश्तेदारों को अंगदान प्रक्रिया के बारे में बता सकते हैं और उन्हें भावनात्मक समर्थन देकर फैसला लेने में मदद कर सकते हैं। इस काम में डॉक्टर की भी चमत्कारिक भूमिका हो सकती है। लेकिन व्यवहार में देखा गया है कि कई बड़े अस्पतालों में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उनके घरवाले अंगदान या देहदान के लिए पर्याप्त जानकारी चाह रहे थे और न तो अस्पताल के सीनियर स्टाफ के पास और न ही डॉक्टरों के पास ठोस जानकारी थी। ऐसे में अंगदान संभव नहीं हो पाया।

दरअसल यह मामला संवेदना से जुड़ा हुआ है। इससे जब तक स्वास्थ्यकर्मी भावनात्मक रूप से न जुड़ेंगे, व्यवहार में अड़चनें सामने आएंगी। हर अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों को नेत्र, अंग और देहदान से जुड़ी सभी जानकारियां हो, इसके लिए भी सतत प्रयास करने की जरूरत है। डॉक्टरों को अंगदान से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं के बारे में सहज ढंग से जानकारियां होनी चाहिए, जिससे लोगों को उनके प्रश्नों का उत्तर मिल पाए।

हम सबको यह समझना होगा कि जीवन बचाने के लिए अंग प्रत्यारोपण ही एकमात्र अंतिम विकल्प है। लेकिन दान किए गए अंगों की आपूर्ति और मांग में असंतुलन है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत लोग अपनी जान खो बैठते हैं। इसलिए अंगदान के महत्व को स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के माध्यम से समुदाय के हर एक सदस्य को समझाया जाना अति आवश्यक है।

मार्च 2019 में, मंगोलिया में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अंगदान और देहदान के विषय में जागरूक करने का एक अभियान चलाया गया। वहां 2000 स्वास्थ्य कर्मचारियों और अंतिम वर्ष के मेडिकल छात्रों के लिए 25 अस्पतालों, और मेडिकल कॉलेजों में अंगदान और देहदान पर व्याख्यान और प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए। प्रशिक्षण गतिविधियों के परिणामस्वरूप, स्वास्थ्य कर्मियों के ज्ञान में वृद्धि हुई और समाज में अंगदान के प्रति दृष्टिकोण में काफी सुधार हुआ। उचित ज्ञान और प्रशिक्षण के साथ स्वास्थ्य कर्मी संभावित अंग दाताओं के रिश्तेदारों से संपर्क करने में सहज महसूस करते थे। अधिक व्यावहारिक अनुभव और अंगदान के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होने के बाद स्वास्थ्य कर्मियों ने आत्मविश्वास हासिल किया था और वे लोगों को समझा पाने में सक्षम रहे।

ऐसा करना हमारे लिए भी आवश्यक है। भारत में भी अंगदान के बारे में स्वास्थ्य कर्मी आम लोगों को आसानी से शिक्षित कर सकते हैं। अगर ऐसा हो तो हम एक स्वस्थ देश का निर्माण की ओर लगातार बढ़ते रहेंगे।

शुभेच्छु    
मंजु प्रभा

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Minutes of Meeting of the Core Committee of NCBOD
Tuesday, 4th April 2023
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