इस मंत्र में सभी के सुखी एवं रोगमुक्त होने की कामना की गई है। यही दधीचि देह दान समिति का ध्येय मंत्र भी है।
पुरातन हिन्दू संस्कृति में समस्त समाज सुखी रहे, निरोगी रहे - इसके लिए प्रयास होते रहे हैं। इस बात का एक उदाहरण महर्षि दधीचि हैं, जिन्होंने दैवीय संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी अस्थियों का दान किया। आज भी महर्षि दधीचि के अनुयायियों की कोई कमी नहीं है।
समाज निरोगी रहे, सुखी रहे और मेरा भी इसमें अंश दान हो, महर्षि दधीचि की इसी परम्परा को चरितार्थ करते हुए स्वर्गीय अनिल मित्तल ने अपने जीते जी यह संकल्प लिया था कि मरणोपरांत वह अपनी देह अथवा अंगों का दान करेंगे।
अनिल जी अविवाहित थे, समाज की सेवा में लगे रहते थे। पहाड़गंज में एक बड़ी गऊशाला का प्रबंध देखते थे। अपने घर के सामने पार्क में लगभग 2000 पौधे लगाए थे और उनको अपना पुत्र मान कर उनकी सेवा करते थे।
अपनी नानी स्वर्गीय श्रीमती माया देवी से प्रेरणा लेकर उन्होंने मरणोपरांत अंग दान का संकल्प लिया था और वह अपने परिवार के आठवें सदस्य बने जिन्होंने मरणोपरांत देह दान या अंग दान किया है।
अचानक मस्तिष्क घात हुआ और कोमा में चले गए। डाॅक्टरों को लगा कि अनिल जी ब्रेन स्टेम डेथ की अवस्था में जा रहे हैं। ‘एक्शन बालाजी अस्पताल’ से एम्स, दिल्ली में लाया गया, जहां उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया।
समिति की एक टोली, अनिल जी के मामा प्रमोद जी, उत्तरी क्षेत्र के संयोजक विनोद जी, समिति के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता जी एवं महामंत्री कमल जी ने प्रशासन से तालमेल कर उनके अंगों का दान हो सके - इसका निरंतर प्रयास किया। फलस्वरूप अनिल जी के हार्ट वाल्व, दोनों गुर्दे, लिवर और आंखों का प्रत्यारोपण हो सका और इस तरह आठ लोगों को जीवनदान मिला और अनिल जी का अंग दान का संकल्प पूरा हो सका।
ब्रेन डेथ की स्थिति में परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। दुःख की इस घड़ी में भी परिजनों द्वारा उनके संकल्प का ध्यान रखना और उसे पूरा करने के निश्चय पर दृढ़ रहना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसीलिए समिति जब संकल्प पत्र भरवाती है तो यह आग्रह करती है कि उसमें पूरे परिवार अथवा कम से कम दो परिवारजनों की सहमति भी हो, जिससे संकल्पकर्ता का संकल्प पूरा हो सके।
समिति के कार्यकर्ताओं को भी मैं साधुवाद देना चाहता हूं जो किसी भी ऐसी परिस्थिति में परिवार और प्रशासन के बीच समन्वय बनाते हैं और दान संभव हो पाता है।
आज भारत में लगभग 5 लाख लोग प्रतिवर्ष अंगों की कमी के कारण मृत्यु को प्राप्त होते हैं। ऐसे में समाज को स्वर्गीय अनिल मित्तल जी जैसे लोगों से प्रेरणा लेकर आगे आना चाहिए और मरणोपरांत अंग दान या देह दान का संकल्प लेना चाहिए, तभी भारत स्वस्थ और सबल बनेगा।
स्वर्गीय अनिल मित्तल जैसे लोग जाने के बाद भी कितने लोगों के बीच जीवित हैं! अमर हैं!
हर्ष मल्होत्रा