संपादक की कलम से
अंगदान समाज में एक परंपरा बने

हम सबको अच्छी तरह पता है कि मनुष्य के शरीर के कई ऐसे अंग हैं, जिन्हें काम न करने पर बदला जा सकता है। इसके लिए किसी दूसरे स्वस्थ व्यक्ति से अंग लेकर उसे बीमार व्यक्ति में प्रत्यारोपित किया जाता है। लेकिन प्रत्यारोपण के लिए अंगों का मिलना, तभी संभव है जब कोई अंगदान करता है। इसलिए अंगदान वर्तमान में दुनिया की एक बड़ी आवश्यकता है।

दुनिया के ढेर सारे देश अंगदान को बढ़ावा देने के लिए कई तरह के प्रयास कर रहे हैं। अपना देश भारत में भी अंगों की कमी है। अंगों की मांग उपलब्धता से कहीं अधिक है। इस स्थिति पर विजय पाने के लिए जननानस को बदलने की जरूरत है। उन्हें इस तरह के दान के लिए मानसिक रूप से तैयार करने की आवश्यकता है।

कई बार देखने में आता है कि लोग अंगदान को लेकर इसलिए भी उत्सुक नहीं दिखते कि उन्हें लगता है उनका धर्म इसकी अनुमति नहीं देता । जबकि अंगदान तो अपने आप में एक धर्म है। इससे बड़ा परोपकार और क्या हो सकता है? इसलिए अंग या देहदान को धर्मानुसार समझने के लिए दधीचि देहदान समिति समय-समय पर विभिन्न धर्मगुरुओं से इस विषय में चर्चा करती रही है और उस चर्चा को समाज के सम्मुख रखती रही है। कोई भी धर्म अंगदान को गलत नहीं मानता। यह परहित का काम है। रामचरित मानस में तो गोस्वामी तुलसीदास ने परहित को ही सबसे बड़ा धर्म कहा है:-

‘‘पर हित सरिस धरम नहीं भाई !’’

दधीचि देहदान समिति इस विषय के क्रियान्वयन एवं इस विषय को लेकर मानव चेतना को जगाने हेतु लगातार प्रयासरत है। अगर आप अपने आस-पास के समाज को देखें तो पाएंगे कि कई बार इस तरह के दान को लेकर परिवार की सहमति नहीं बन पाती। इसके लिए देह दान व अंग दान विषय को समाज के विभिन्न क्षेत्रों तक लेकर जाना होगा, लोगों से चर्चा करनी होगी। इससे ही इसकी स्वीकार्यता और बढ़ेगी। समिति लगातार इस विषय को लेकर लोगों के बीच जा रही है। कई तरह की बाधाओं से मुक्ति मिली है। लेकिन अभी इस यात्रा का मार्ग प्रशस्त नहीं हुआ है।

समाज के हर वर्ग के लोगों के बीच अंगदान और देहदान की स्वीकार्यता बढ़ानी होगी। स्कूल के बच्चों में भी परोपकार के इस कार्य के लिए मानस तैयार करना होगा। कल जब वे बच्चे बड़े होकर देश के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे तो उन्हें याद रहना चाहिए कि अंगदान और देहदान को बढ़ावा देना भी उनकी एक दायित्व भरा काम है।

इस बार के अंक में ऐसी ही गतिविधियों की सूचना आप तक पहुंचा रही हूं, जिससे आपको भी पता चल सके कि लोगों के बीच इस परोपकार की जड़ें कैसे फैलानी है। भारत में अंगदान से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिए जन जागरूकता के लिए ठोस प्रयास जरूरी हैं। इन मुद्दों को हल करके हम एक अधिक पारदर्शी, नैतिक और दयालु अंगदान प्रणाली का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, क्योंकि अंगदान किसी को जीवन का उपहार देने का एक निस्वार्थ कार्य है और यह समाज में एक परंपरा के रूप में विकसित हो।

शुभेच्छु
मंजु प्रभा

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समिति के बढ़ते कदम
दिल्ली एनसीआर के बाहर भी...
Article
प्रोफेसर (डॉ) अतुल गोयल
अंग प्रत्यारोपण, आवश्यकता एवं समस्याएं
मेरा सफर मेरा अनुभव
सुनील गन्धर्व
समाचार पत्रों में देहदान और अंगदान
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