1998 की बात है ,श्रीमती शशि बेरी भारती की मृत्यु रात में 8 बजे हुई । उनके पति देह दान करना चाहते थे। बेटियां और दामाद विरोध में थे। अस्पताल से शव को लेकर हमारे घर के बाहर आकर पूछ रहे थे कि अब क्या करें। मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की एनाटॉमी की हेड डॉक्टर कॉल विद्यार्थियों की आवश्यकता को समझते हुए शव को लेने की इच्छुक थी ,पर कहा कि रात में स्टाफ नहीं है ,आप मोर्चरी की व्यवस्था कर लीजिए सुबह 10 बजे के बाद हम अपने कॉलेज में पार्थिव शरीर रिसीव कर लेंगे। किसी तरह से प्रयास चलता रहा और यह प्रक्रिया पूर्ण हुई । स्व.भारती की प्रार्थना सभा में डॉक्टर कॉल व दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. साहब सिंह वर्मा ने उपस्थित होकर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी। डॉक्टर कॉल ने मैडिकल कॉलेज में पार्थिव शरीर की उपयोगिता बताते हुए परिवार का धन्यवाद भी किया। पर बच्चों का मन स्थिर होने में बहुत समय लगा।
आरंभ में देह दान करवाने में बहुत अड़चनें आईं, कभी गाड़ी नहीं, कभी ड्राइवर नहीं, कभी परिवार समझने में देर लगा रहा है, कभी किसी कॉलेज का फोन नहीं उठा, कभी उठा तो उनके पास शव रखने को टब नहीं है। लगभग तीन-चार साल के अथक प्रयास से स्थिति यह बनी कि 24×7 दिल्ली के किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में देहदान की व्यवस्था सुचारू रूप से शुरु हो गई। एनसीआर में खुलने वाले कॉलेजों के लिए पार्थिव शरीर की मांग भी हम पूरी करने लगे हैं।
आरंभिक दिनों में जनसाधारण से देहदान अंगदान विषय पर चर्चा करने से यह बात समझ में आई कि धार्मिक मान्यताएं व रुढ़िवादी सोच एक मुख्य बड़ी बाधा है । धर्म गुरुओं से इस विषय पर बातचीत के वीडियो वेबसाइट पर डाले। नैमिषारण्य में दधीचि की पुण्य स्थली पर यात्राएं लेकर जानी शुरू की। दधीचि कथा के माध्यम से भी जनजागृति के प्रयास चल रहे हैं। इन सब प्रयासों के बीच c-voter का एक सर्वे आश्चर्यजनक रिपोर्ट लेकर प्रस्तुत हुआ । अधिकांश लोगों को यह पता ही नहीं है कि मृत्यु के बाद शरीर का या अंगों का कुछ उपयोग भी हो सकता है ।जानकारी मिलने पर अधिकांश का त्वरित उत्तर हां ही था । इससे यह समझ में आता है कि जानकारियां सब तक पहुंचे इस पर अधिक प्रयास की आवश्यकता है।
11 अक्टूबर 1997 को परम श्रद्धेय नानाजी देशमुख द्वारा संकल्प पत्र भरने से दधीचि देहदान समिति की विधिवत् स्थापना हुई । श्री आलोक कुमार के कुशल नेतृत्व में इस संस्था ने 25 वर्ष व्यवस्थित ढंग से काम किया है और अपने कार्यकर्ताओं के समर्पण भाव व प्रयासों की निरंतरता से अपनी एक पहचान भी बनाई है।
अपने रजत जयंती वर्ष में देहदान अंगदान विषय पर काम करने वाली देश भर की संस्थाओं को एक मंच पर लाने का एक सफल प्रयास दिल्ली से शुरू हुआ है। विश्वास है कि सामूहिक प्रयास से समाज में इस विषय की जागरूकता होगी, स्वीकार्यता बढ़ेगी और सरकारी तंत्र इसके लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराएगा । इस यात्रा में हम सब बिना थके आगे बढ़ते रहेंगे इसी विश्वास के साथ ...
शुभेच्छु
मंजु प्रभा