संरक्षक की कलम से
निरामय भारत की ओर बढ़ते कदम

देश में बड़ी संख्या में ऐसे मरीज हैं, जिनके कोई अंग बेकार हो गए और वह किसी और के अंगो से स्वस्थ हो सकते हैं। मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों को अपनी पढाई के लिए एक वास्तविक मनुष्य शरीर की जरूरत होती है। पढाई के पहले दो वर्ष उसी पर काम करके चिकित्सा का विज्ञान समझ में आता है।

देश के अलग-अलग भागों में अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं और महत्वपूर्ण व्यक्ति निष्ठापूर्वक इस काम में लगे हैं। अपने-अपने क्षेत्र में वे देहदान और अंगदान की चेतना फैलाते हैं, लोगों को दान करने के लिए प्रेरित करते है। प्रेरित हुए लोगों के फार्म भरवा कर उनका पंजीकरण करते हैं और किसी देहदानी या अंगदानी की मृत्यु के बाद उसके दान की व्यवस्था करवाते हैं।

ऐसा होने पर भी भारत में देह और अंगदान का प्रतिशत आवश्यकता से भी कम है और बाकी देशों से भी हम बहुत पीछे हैं। एक अनुमान के अनुसार अगर केवल 14 दिनों में भारत में मरनेवाले लोगों की आंखें दान हो तो भारत में आंखों की प्रतीक्षा सूची समाप्त हो जाएगी। पर अभी तो प्रति 10 लाख में 0.8 प्रतिशत लोग ही दान करते हैं।

ऐसे में यह आवश्यक हो गया कि देशभर में इस दिशा में काम करनेवाले सभी लोग मिले, एक साझा मंच बनाकर एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाए।
संभवतः पहली बार ऐसा हुआ होगा कि भारत भर में काम करने वाले 56 स्वयंसेवी संगठन आपस में चर्चा करके अपनी प्रेरणा से दिल्ली में विचार विमर्श के लिए इकठ्ठा हुए। इसमें भारत के पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण व मध्य सब क्षेत्रों के लोग आए थे। यह वास्तव में पूर्णदेशीय स्वरूप था। स्वयंसेवी संस्थाओं की अपनी पहल से इस तरह इकठ्ठे होने का यह पहला ही अवसर होगा। यह कार्यक्रम सरकार ने नहीं किया था, पर सरकार इसमें शामिल हुई। अपनी पूरी ताकत से शामिल हुई। देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया, स्वास्थ्य राज्य मंत्री डॉ. भारती प्रवीण पवार, स्वास्थ्य सचिव श्री राजेश भूषण, इत्यादि इसमें शामिल हुए। इसमें डॉक्टरों ने भी बड़ी भूमिका निभाई। इसमें देश के डॉक्टरों के सभी बड़े संगठन शामिल हुए। इन सभी ने मिलजुलकर अपनी गतिविधियों को एक दूसरे से साझा किया। एक दूसरे के अनुभवों को समझा व उनसे सीखने का प्रयत्न किया। इसको पूरे देश में करने के लिए देह-अंगदान के लिए एक राष्ट्रीय अभियान की भी घोषणा की। मुझे इसके संयोजक की जिम्मेवारी दी गयी है।

इस सामाजिक प्रयास की जरूरत को हमने समझने के लिए सी-वोटर के सर्वे को समझा, जिसको श्री यशवंत देशमुख ने प्रस्तुत किया। इस सर्वे में मालूम पड़ा कि देश के 85 प्रतिशत लोग इस तरह के दान से परिचित ही नहीं है। दूसरी चौंकाने वाली बात यह थी कि सर्वेक्षण करनेवाले लोगों को जब इस दान के बारे में बताया तो उनमे एक उत्साहजनक स्वीकार्यता दिखाई दी कि ‘हां’ हम करेंगे यह दान। यह मिथक टूट गया कि धार्मिक रूढ़ियां और अंधविश्वास के कारण दान नहीं होते। इस विषय में जानकारी फैले व जानकारी चेतना बने, चेतना लोगो को संकल्प के लिए प्रवृत करें। संकल्पित लोगों के जाने से यह दान प्राप्त हो। यह काम तो स्वयंसेवी संस्थाओं को ही करना है। लोग तैयार हुए और इस प्रकार अंगदान करने की सुविधाएं, अंग प्रत्यारोपित करने की सुविधाएं अगर अस्पतालों में उपलब्ध नहीं कराई गयी तो भी यह प्रयत्न सार्थक नहीं होगा। सरकार ने इस प्रकार का इंफ्रास्ट्रक्चर मुहैया कराने की सहमति बनाई है। सरकार और समाज के सामूहिक प्रयास से हम देश में अंग और देहदान की प्रक्रिया को तेज करेंगे। इस विषय की प्रतीक्षा सूची और कमी को पूरा करेंगे और निरामय भारत के द्वारा 'स्वस्थ सबल भारत' का निर्माण कर पाएंगे।

आपका    
आलोक कुमार

We invite you to join in this Noble Mission.
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