हमारी समिति ने अपने 23 वर्षों के समर्पण से समाज में देहदान के प्रति स्वीकार्यता लाने का सफल प्रयास किया है। जिसके फलस्वरूप लगभग 12000 व्यक्तियों ने मरणोपरांत देहदान का संकल्प पत्र भरा है। 322 देहदान हो भी पाए हैं। देहदान की आवश्यकता केवल एनाटॉमी की शिक्षा के लिए ही नहीं है, अपितु सर्जरी या procedural treatment के प्रशिक्षण के लिए भी मृत देह का उपयोग किया जाता है। जैसे जैसे देश में नए मेडिकल कॉलेज और रिसर्च सेंटर बढ़ रहे हैं, मृत देह की आवश्यकता भी बढ़ रही है। कोविड के कारण इस दान की प्रक्रिया में बहुत अवरोध आ रहे हैं। लॉकडाउन में, पहले 4 महीने तो देहदान और नेत्रदान बिल्कुल भी नहीं हो पाए। फिर दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों ने कहा कि देहदान के लिए कोविड टैस्ट, मृत्यु से अधिक से अधिक 48 घंटे पहले हुआ होना चाहिए, जोकि हर समय संभव नहीं हो पाया।
कुछ देहदान उस समय हुए भी, परंतु परिवार की इच्छा होते हुए भी अधिकांशतः देहदान संभव नहीं हो पाए क्योंकि कोविड टैस्ट नहीं था एवं मृत शरीर का RTPCR Test हो पाना भी आसान नहीं था। टेस्ट की रिपोर्ट आने में भी बहुत अधिक समय लग जा रहा था। अगर, देहदान के बाद पता चले कि मृत व्यक्ति कोविड पाज़िटिव था तो परिवार को सूचित करके, सरकार की ओर से कोविड गाईडलाइंस के अनुसार, उस पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार कर देने का प्रावधान था। इस तरह की परिस्थितियां परिवार के लिए असमंजस व परेशानी वाली थी। क्योंकि मेडिकल कॉलेजों में अभी फिजिकल शिक्षा भी शुरू नहीं हुई है, इसलिए भी देहदान की आवश्यकता अभी नहीं लग रही।
इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए, समिति ने अपनी कार्य कारिणी में चर्चा करके, भारी मन से, समय की व्यवहारिकता को देखते हुए निर्णय लिया है कि कुछ महीनों के लिए देहदान का कार्य स्थगित रहेगा। नेत्रदान -अंगदान चलता रहेगा, जन जागरण अभियान, वर्चुअल वेबीनार भी यथावत् चलेंगे। संकल्पकर्ता अपने संकल्प पत्र भी भर पाएंगे।
भारत में कोविड वैक्सीन आने के बाद जल्दी ही और अधिक सुधार की संभावना है। आशा है कि जल्दी ही स्थिति सामान्य होगी और समिति अपना देह दान का कार्य यथावत् कर सकेगी।
धन्यवाद।
आपका
हर्ष मल्होत्रा