11 अक्टूबर 1997 को हमने अपना पहला देहदानियों का उत्सव दीनदयाल शोध संस्थान, दिल्ली के सभागार में मनाया । राष्ट्र ऋषि श्री नानाजी देशमुख के साथ साथ दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री साहब सिंह वर्मा, स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन, एम्स के निदेशक डॉक्टर वेणुगोपाल, साध्वी उमा भारती जैसे समाज के सम्मानित व प्रतिभावान व्यक्ति उस कार्यक्रम में उपस्थित थे।
तभी देह दान का संकल्प पत्र भरते समय नाना जी ने ₹11000 का दान समिति को इसलिए दिया कि अगर उनकी मृत्यु दिल्ली के बाहर हो गई तो उनके शरीर को देहदान के लिए दिल्ली लाने की व्यवस्था समिति कर सके। स्मरण रहे फरवरी 2010 में उनका पार्थिव शरीर विशेष विमान द्वारा चित्रकूट से लाकर दिल्ली एम्स में दान किया गया।
इस वर्ष भी, नाना जी के जन्मदिन पर 11 अक्टूबर को समिति ने दीनदयाल शोध संस्थान के साथ मिलकर अपना देहदानियों का 43वां उत्सव मनाया। करोना महामारी के कारण यह उत्सव वर्चुअल प्लेटफॉर्म के माध्यम से हुआ।
इस अवसर पर महामंडलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही कि आगामी कुंभ में साधु समाज के बीच वे अंगदान- देहदान का विषय आग्रह पूर्वक चर्चा के लिए रखेंगे।
उन्होंने बताया कि वरिष्ठ साधुओं का शरीर भी उनकी संपत्ति न होकर उनके शिष्यों के अधिकार में होता है। इस चर्चा में अगर साधु समाज द्वारा अपने गुरुजनों के पार्थिव शरीर का देहदान स्वीकार्य हुआ तो इस आंदोलन के लिए यह कुंभ एक मील का पत्थर साबित होगा।
हम उत्सुकता से कुंभ के इस सुअवसर की प्रतीक्षा में है जहां देहदान -अंगदान एक धार्मिक आंदोलन का रूप ले सकता है। भारत को स्वस्थ सबल बनाने की तरफ यह एक बड़ा कदम होगा ।
धन्यवाद।
आपका
हर्ष मल्होत्रा
दिल्ली-एनसीआर
सितम्बर-अक्टूबर 2020