अध्यक्ष की कलम से
लोकप्रिय और महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों के सहयोग से समिति के अभियान में गति

इस बात में कोई संदेह नहीं कि देश में देहदान, अंगदान और नेत्रदान बढ़ा है।पिछले 25 वर्षों से दधीचि देहदान समिति लगातार इस नेक काम को लेकर, लोगों के बीच जो जागरूकता फैलाने के काम में लगी है। उसके सुखद परिणाम ये हैं कि लोग देहदान, अंगदान और नेत्रदान को लेकर चर्चा कर रहे हैं और संकल्प ले रहे हैं। आधुनिक चिकित्सा के विकास ने अंगों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में प्रत्यारोपित करना थोड़ा आसान भी बना दिया है।

पीछे मुड़कर देखें तो, वर्ष 1954 याद आता है, जब संयुक्त राज्य अमेरिका में डॉक्टर जोसेफ मरे ने जुड़वां भाइयों रोनाल्ड और रिचर्ड हेरिक के बीच किडनी प्रत्यारोपण का काम सफलता पूर्वक पूरा किया था। डॉक्टर जोसेफ मरे को नोबल पुरस्कार भी मिला था। तब से अब तक मेडिकल साइंस के विकास से अंग प्रत्यारोपण सफलता की दर बहुत बढ़ गई है, जो दुनिया भर में इस नेक काम में लगे लोगों की उम्मीद के बढ़ा देती है। दधीचि देहदान समिति भी अपने स्थापना काल से ही इसी उद्देश्य के साथ आगे बढ़ रही है कि इस देश में कम से कम अंग प्रत्यारोपण के अभाव में लोगों की जान न जाए। एक आंकड़े बताते हैं कि 2014 में जहां कुल 1,149 अंगों का दान हुआ वहीं, 2017 में यह बढ़कर 2,870 हो गया। इसमें किडनी और लीवर के दान में आई ढाई गुना बढ़त के साथ हृदय के दान में साढ़े छह गुना बढ़त भी शामिल है। फिर भी ये कम है। अंग के इंतजार में बैठे लोगों की सूची लंबी है। समिति लगातार प्रयास कर रही है कि लोग दिल से इस काम में जुड़ें।

कुछ दिन पहले की एक खबर पर आपका भी ध्यान गया होगा। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में बेंगलुरु के नवीन शेखरप्पा की मौत हो गई थी। 21 मार्च,2022 को जब उनका शब बेंगलुरु पहुंचा तो उनके पिताजी ने उनका शरीर दावणगेरे के एसएस अस्पताल को चिकित्सा अध्ययन के लिए दान करने का फैसला किया। निष्चित रूप से नवीन शेखरप्पा के पिता शंकरप्पा ने समाज के हित के लिए एक बड़ा काम किया। उनका बड़प्पन प्रशंसनीय है। जागरूकता ऐसे समाचारों से भी फैलती है। कुछ महीने पहले जब मशहूर कन्नड़ अभिनेता पुनीत राजकुमार का असमायिक निधन हुआ तो उनके परिवार वालों ने उनकी आंखें दान करने में जरा भी संकोच नहीं किया। अभिनेता पुनीत राजकुमार ने नेत्रदान का संकल्प लिया हुआ था। उनके पिताजी और विख्यात अभिनेता डॉ. राजकुमार ने भी नेत्रदान का संकल्प लिया था और वर्ष 2006 में उनके निधन के बाद उनकी आंखें दान कर दी गई थीं। शीर्षष्थ लोग ऐसे उदाहरण पेश करते हैं तो निश्चित रूप से पूरा समाज प्रभावित होता है।

अपने देश में अनेक नेताओं ने भी देहदान, अंगदान और नेत्रदान में दिलचस्पी लेकर आर्दश प्रस्तुत किया है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी अंगदान का संकल्प लिया था। वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविद भी इस मामले में संवेदनशील हैं। राष्ट्रपति भवन में समिति का एक कार्यक्रम उनके आतिथ्य में हुआ था। राष्ट्पति पद की उम्मीदवार और वरिष्ठ नेता द्रौपदी मुर्मू भी अंगदान को लेकर बहुत जागरूक हैं। लोकप्रिय और महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग जब इस तरह किसी अभियान को सहारा देते हैं, तो तस्वीर बदल जाती है।

आपका    
हर्ष मल्होत्रा

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