कई गंभीर रोगों के लिए अंग प्रत्यारोपण एकमात्र उपचार है। आज ऐसे हालात हैं कि अपने देश में अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता, उपलब्धता से अधिक है।
भारत में वर्तमान में मृतक अंग दान दर बहुत कम है। इस कम दान दर के कारण प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले रोगियों को लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है। अंतिम चरण के गुर्दे की बीमारी वाले मरीजों को तो तब तक डायलिसिस पर रखना पड़ता है, जब तक कि उन्हें दाता की ओर से अंग नहीं मिल जाता। लेकिन हृदय, फेफड़े और यकृत की आवश्यकता वाले रोगियों को यांत्रिक उपकरणों पर लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता है। इसलिए अंगदान को बढ़ाने और प्रत्यारोपण कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अंगदान के प्रति जागरूकता जरूरी है और यह भी जरूरी है कि अंगदान के प्रति लोगों की सोच सकारात्मक हो। आमतौर पर माना जाता है कि शहरों और महानगरों में अंगदान को लेकर लोग ज्यादा जागरूक हैं। लोग यह भी मानते हैं कि देश के ग्रामीण इलाकों में लोग अंगदान और देहदान के महत्व से परिचित नहीं।
लगभग आठ साल पहले, जनवरी 2014 में, जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पुडुचेरी के ग्रामीण सेवा ने समुदाय आधारित एक अध्ययन किया था। इसमें चार गांवों के लोगों को शामिल किया गया था। इस अध्ययन का उद्देश्य ग्रामीण आबादी के बीच अंगदान के संबंध में जागरूकता और दृष्टिकोण का आकलन करना और उनकी जागरूकता से जुड़े समाजशास्त्रीय कारकों का मूल्यांकन करना था।
चार गांवों में रहने वाले 360 लोगों के बीच किए गए अध्ययन में पाया गया कि 88 प्रतिशत लोग (317/360) अंगदान के बारे में जागरूक थे। उनमें से 83 प्रतिशत (263/317) लोगों के लिए अंगदान के बारे में उनकी जागरूकता का मुख्य साधन मीडिया था। उनमें से 88 प्रतिशत (281/317) लोगों ने कहा कि अंगदान का मुख्य उद्देश्य जीवन को बचाना है। उनमें से अधिकांश यानी 87 प्रतिशत लोग (290/317) इस बात को जानते थे कि अंगदान के लिए मौद्रिक लाभ स्वीकार नहीं किया जा सकता है। उनमें से 70 प्रतिशत लोग (223/317) मृत्यु के बाद अपने अंगों को दान करने के लिए तैयार थे और उनमें से जिन प्रतिभागियों ने अपने अंगों को दान करने से इनकार कर दिया, उनमें 57 प्रतिशत (25/44) ने बताया कि इनकार की सबसे बड़ी वजह परिवार का सहमत नहीं होना है। प्रतिभागियों में से बहुत कम लोग किसी ऐसे व्यक्ति को जानते थे, जिसने अंगदान किया था। उस अध्ययन से यह जरूर पता चलता है कि पुडुचेरी के ग्रामीण लोगों में अंगदान के बारे में उच्च स्तर की जागरूकता है और अधिकांश प्रतिभागी अपने अंग दान करने के इच्छुक हैं, लेकिन यह तस्वीर पूरे देश की नहीं है।
अपने देश में देखा जाए तो आम लोग रक्तदान के महत्व को तो भली-भांति समझने लगे हैं, लेकिन अंगदान को लेकर काफी हद तक झिझक है। अंगदान के लिए रिश्तेदारों की सहमति आवश्यक है। यह सहमति तभी संभव है, जब अंगदान को लेकर एक बेहद सकारात्मक सोच समाज के पास हो । अंगदान के महत्व और इससे संबंधित कानूनी प्रावधानों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की बहुत आवश्यकता है । अंगदान के प्रति जागरूकता और दृष्टिकोण के आकलन से संवेदीकरण कार्यक्रमों की योजना बनाने और सामुदायिक स्तर पर ज्ञान का प्रचार करने में मदद मिलेगी।
भारत में, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अंगदान के बारे में लोगों की जागरूकता और दृष्टिकोण पर अध्ययन की कमी है। इस नेक काम में संचार माध्यमों की बड़ी भूमिका हो सकती है। स्थानीय सरकारी अस्पतालों में अंगदान से जुड़ी सुविधाओं की भी कमी देखी जाती है, लेकिन किसी जरूरत को लेकर जनमानस बदलता है तो सुविधाएं आ ही जाती हैं और अंगदान को लेकर जनमानस बदले, इसके लिए हमें और आपको अपना मन बदलना होगा।
आपका
हर्ष मल्होत्रा
दिल्ली-एनसीआर
जुलाई-अगस्त 2022...